Friday, September 24, 2010

मम्मी पापा

हमारी सारी बातें ,चहल-पहल है मम्मी पापा 
रास्ता मंजिल , धूल  , दुपहरी घर संसार है मम्मी पापा 

घर की सारी बुनियादे , दीवारे बमों-दर है मम्मी पापा
सब को बंद के रखने वाले हमारी सबसे बड़ी सौगात है मम्मी पापा 


दिन भर चक्की जैसे पिसते, घिसते रोज़ मशीनों से
सांझ ढले फिर भी हंसने का एक हुनर हैं पापा मम्मी

भीतर से खालिस सोने जैसे , उपर से तेज़ - दीप्तिमान 
अलग-अनूठा ,अनाभुझा एक तेवर है मम्मी पापा 

हम क्या जाने दुनिया दारी, हम क्या जाने हंगामा
हर दिन की हिदायत , डांट डपट और दुलार  हैं पापा मम्मी


गिर गिर कर हमने उनसे, चलते रहना सीखा है
रस्ता, मंज़िल, छइयां, पानी, रफ़्तार  हैं पापा मम्मी

हम जब भी टूटे है , इन् दोनों ने जोड़ा है 
कच्ची-पक्की डोरी है , हमारा गर्व और अभिमान है मम्मी पापा 

कभी बड़ा सा हाथ ख़र्च थे, कभी पड़ी माथे की सिलवट 
मन का साहस, कभी धेर्य कभी सब्र का आसार है मम्मी पापा 

सपनो का आसमान और सपनो का साकार 
हर मझदार , हर सवाल का सबसे आसन जवाब है मम्मी पापा 

जीवन की पहली पंक्ति , हर गलती का पहला बचाव 
सबसे प्यारे , सबसे पूज्य आपका शुक्राना हैं मम्मी  पापा 

3 comments:

Ra said...

आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा , अच्छा लिख रहे है आप , प्रयास करते रहे ,,और बेहतर लिख पायेंगे ,,,बहुत अधिक पढ़े और बहुत कम लिखे ..यही लेखन का आधार है , और जहाँ तक टिप्पणियों का प्रश्न है ,,ये आये तो अच्छा और ना आये तो भी अच्छा ,,,लेखन आपके मन को सुकून और शान्ति तो देगा ही .....मेरी बातों को मशवरा ना समझे एक मित्र की तरह आपको ये सब बता रहा हूँ ,,,अभी समय कम है , जल्द ही समय निकालकर आपकी पिछली रचनाये भी पढ़ता हूँ

अथाह...

!!!

Patali-The-Village said...

बहुत सार्थक कविता धन्यवाद|

Abhishek Shrivastava said...

आप बहूत अच्छा लिखती हो में भी प्रयास करुगा की आप जैसा लिखे सकू ! धन्यवाद