Tuesday, May 12, 2009

माँ कितनी ख़ास हो तुम


सूरज का गुमान हो तुम
चाँद की मिठास हो तुम
नदिया की प्यास हो तुम
माँ कितनी ख़ास हो तुम ।

तुम न होती तो मैं न होता
तुम ने जो दिया जीवन रूपी अनमोल तोहफा
जनम जनम तक ऋणी हु तेरा
धूप में छाव हो तुम
प्यास में अमृत पान हो तुम
माँ कितनी ख़ास हो तुम ।
अपनी नींद दे कर मुझे सुलाया
मैं गिरा तो मुझे उठाया
दुनिया से लड़ना तुम्हें ने सिखाया
मेरी शक्ति ,मेरा अभिमान हो तम
माँ कितनी ख़ास हो तुम।


जग को जीवन दिया है तुमने
मौत को भी हराया है
तेरी शक्ति के आगे कोई नहीं टिक पाया है
ममता की मूरत , भगवान् का वरदान हो तुम
कठोर पर भी प्यार की फुहार हो तुम
माँ कितनी ख़ास हो तुम ।
सारे दुःख मेरे,अपने आँचल में भर लेती हो
सारे सुख मुझ पे कर देती हो
सारा जग है झूठा बस यही एक सच है पूरा
माँ से बड़ा भगवान् न दूजा
माँ को समझाए ऐसे शब्द कहाँ से लाऊ
किन शब्दों में बताऊ
की कितनी ख़ास हो तुम माँ




4 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

सूरज का गुमान हो तुम
चाँद की मिठास हो तुम
नदिया की प्यास हो तुम
माँ कितनी ख़ास हो तुम ।
मानसी ,
अIपने माँ के लिए बहुत सुन्दर शब्दों में एक खूबसूरत कविता लिखी है .माँ के ऊपर तो जितना भी लिखा जाय कम है .
अपने ब्लॉग पर एक हिंदी लिखने वाला बक्सा भी लगा लें तो हिंदी में कमेन्ट लिखना आसान रहेगा .ये बक्सा मेरे ब्लॉग से भी कापी कर सकती हैं.
हेमंत कुमार

पूनम श्रीवास्तव said...

Man ke upar likhi bahut sundar kavita...Badhai..
Poonam

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"माँ से बड़ा भगवान न दूजा"
बहुत सुन्दर....

The Highlander said...

Wonderful!!