Wednesday, April 22, 2009

उल्लू बनते जाईये…

जो भी मिले उल्लू बनते जाईये…हर ठग को अपना आदर्श मानते जाईये।
शर्म हया को रखो ताक में ,उल्लू बनने की कला सीखते जाईये।
शान से चांदी का जूता पहन कर ,जिस का सर मिले उससे बजाते जाइये।
किसी को ठग ने में क्या जाता है ??इंसान ही तो इंसान के काम आता है,
मुर्ख को मुर्ख बनाना में क्या घबराना
इसे अपना धर्मं मान का आगे बदते जाईये।
सफलता की सीढ़ी चढ़ते जाइए
जो भी मिले उल्लू बनते जाइए ।

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